गिएथूर्न गांव: सड़कें नहीं, नहरों का संजाल
ईको फ्रैण्डली गांव निश्चय ही लुभावने होंगे, इसमें कहीं कोई शक-संदेह नहीं। परिकल्पना होती है कि आदर्श गांव हो तो चमचमाती सड़कें हो... मूलभूत सेवाओं-सुविधाओं की श्रंखला बेहतरीन हो... कोलाहल से दूर सुरम्य वातावरण हो... प्राकृतिक सौन्दर्य की आभा से परिवेश आलोकित हो रहा हो।
जी हां, इन सभी खूबियों से लबरेज नीदरलैण्ड का एक गांव 'गिएथूर्न"
देश-दुनिया के पर्र्यटकों के लिए खास बन गया। स्वप्न लोक के इस गांव में
खास यह है कि गांव में सड़कों का संजाल नहीं है। सपनों के इस गांव में
खूबसूरती के साथ ही सादगी भी खास है।
शायद इसी लिए इसे 'दक्षिण का वेनिस" एवं 'नीदरलैण्ड का वेनिस" भी कहा जाता
है। हॉलैण्ड-नीदरलैण्ड का यह विशिष्ट पर्यटन स्थल बन चुका है। नीदरलैण्ड
के 'गिएथूर्न गांव" में देश विदेश के पर्यटकों की आवाजाही हमेशा बनी रहती
है।
इस गांव में सड़कों का संजाल तो नहीं अलबत्ता नहरों का गजब का संजाल है।
करीब साढ़े सात किलोमीटर दायरे में फैला नहरों का यह नेटवर्क ही आवाजाही
अथवा यातायात का सुगम मार्ग है।
आदर्श गांव हो आैर कोई चमचमाती कार या बाइक न हो, ऐसा हो नहीं सकता लेकिन
ताज्जुब है कि इस गांव में न तो कोई कार है आैर न ही कोई बाइक ही है। इसका
एक बड़ा कारण भी है कि इस ईको फ्रैण्डली गांव में वाहनों को चलाने लायक सड़क
भी तो नहीं हैं।
गांव में कहीं किसी को जाना हो तो सुगम साधन बोट (नाव) है। इन नहरों में इलेक्ट्रिक मोटर बोट भी चलती है। इन नावों से कोई शोर-शराबा नहीं होता। गांव के बाशिंदों को कहीं कोई शिकायत भी नहीं रहती।
आसपड़ोस में आने जाने के लिए बाशिंदों ने नहरों के उपर लकड़ी के पुुल बना रखे हैं। जिससे बाशिंदों को आसपड़ोस में आने-जाने में सहूलियत रहती है। नीदरलैण्ड व दुुनिया के इस विलक्षण गांव का उद्भव वर्ष 1230 में बताया जाता है।
विशेषज्ञों की मानें तो वर्ष 1170 की विकराल बाढ़ से यह इलाका अत्यधिक प्रभावित रहा। इस इलाके में आबादी की चहलकदमी पर बाशिंदों को बकरियों के असंख्य सींग मिले थे।
शायद इसी लिए इस स्थान का नाम पहले गेटेनहोर्न पड़ा। गेटेनहोर्न का शाब्दिक अर्थ 'बकरियों के सींग" होता है।
यही गेटेनहोर्न अपभ्रंश होकर अब गिएथूर्न बन गया। इस गांव में नहरों का संजाल न तो किसी शासकीय योजना के तहत बना न किसी योजनाबद्ध तौर तरीके से नहरों को खोदा गया।
विशेषज्ञों की मानें तो 1170 की प्रलयंकारी बाढ़ में भारी तादाद में दलदली मिट्टी व बहुमूूल्यवान वनस्पतियां बह कर आ गयीं। दलदली मिट्टी वनस्पतियों को यह मिलाजुुला स्वरुप र्इंधन के तौर पर उपयोगी माना गया।
शायद इसी लिए बाशिंदों ने खोदाई की। खोदाई होते-होते कब इस गांव में नहरों का संजाल बन गया, बाशिंदों को पता ही नहीं चला। शायद किसी को अनुमान नहीं होगा कि खोदाई अचानक ऐसा स्वरुप ले लेगा, जिसे दुनिया के एक बेहतरीन पर्यटन स्थल के तौर जाना जायेगा।
इस गांव में करीब साढ़े सात किलो मीटर लम्बी नहरों का संजाल है। बताते हैं कि करीब छह दशक पहले यह गांव अचानक विश्व पर्यटन मानचित्र पर छा गया।
वर्ष 1958 के आसपास डच कामेडी फिल्म फेनफेयर की शूटिंग गिएथूर्न गांव में की गयी। इसके बाद यह गावं दुनिया में खास तौर से ईको फ्रैण्डली विलेज के तौर पर जाना जाने लगा।
इस फिल्म को बनाने वाले बर्ट हांस्त्रा थे। 'नो कार नो पाल्यूशन" की छवि के साथ ही इस गांव का कोना-कोना प्राकृतिक सौन्दर्य से लबरेज है। वातावरण में एक खुशबू के साथ मंद-मंद पवन भी मन-मस्तिष्क को झंकृत कर देती है।
नहरों के उपर लकड़ी के शानदार पुल हैं तो गांव में शानदार म्युजियम भी हैं। इस गांव में नये नवेले आशियाने दिखेंगे तो वहीं दो वर्ष पुराने घर-घरौंदे भी शानदार आवरण में नजर आयेंगे।
इस गांव में सैर सपाटा करने के लिए एमस्टडर्म एयरपोर्ट से भी जा सकते हैं तो रोटेर्डम एयरपोर्ट से भी यात्रा का लुफ्त उठा सकते हैं।
गांव में कहीं किसी को जाना हो तो सुगम साधन बोट (नाव) है। इन नहरों में इलेक्ट्रिक मोटर बोट भी चलती है। इन नावों से कोई शोर-शराबा नहीं होता। गांव के बाशिंदों को कहीं कोई शिकायत भी नहीं रहती।
आसपड़ोस में आने जाने के लिए बाशिंदों ने नहरों के उपर लकड़ी के पुुल बना रखे हैं। जिससे बाशिंदों को आसपड़ोस में आने-जाने में सहूलियत रहती है। नीदरलैण्ड व दुुनिया के इस विलक्षण गांव का उद्भव वर्ष 1230 में बताया जाता है।
विशेषज्ञों की मानें तो वर्ष 1170 की विकराल बाढ़ से यह इलाका अत्यधिक प्रभावित रहा। इस इलाके में आबादी की चहलकदमी पर बाशिंदों को बकरियों के असंख्य सींग मिले थे।
शायद इसी लिए इस स्थान का नाम पहले गेटेनहोर्न पड़ा। गेटेनहोर्न का शाब्दिक अर्थ 'बकरियों के सींग" होता है।
यही गेटेनहोर्न अपभ्रंश होकर अब गिएथूर्न बन गया। इस गांव में नहरों का संजाल न तो किसी शासकीय योजना के तहत बना न किसी योजनाबद्ध तौर तरीके से नहरों को खोदा गया।
विशेषज्ञों की मानें तो 1170 की प्रलयंकारी बाढ़ में भारी तादाद में दलदली मिट्टी व बहुमूूल्यवान वनस्पतियां बह कर आ गयीं। दलदली मिट्टी वनस्पतियों को यह मिलाजुुला स्वरुप र्इंधन के तौर पर उपयोगी माना गया।
शायद इसी लिए बाशिंदों ने खोदाई की। खोदाई होते-होते कब इस गांव में नहरों का संजाल बन गया, बाशिंदों को पता ही नहीं चला। शायद किसी को अनुमान नहीं होगा कि खोदाई अचानक ऐसा स्वरुप ले लेगा, जिसे दुनिया के एक बेहतरीन पर्यटन स्थल के तौर जाना जायेगा।
इस गांव में करीब साढ़े सात किलो मीटर लम्बी नहरों का संजाल है। बताते हैं कि करीब छह दशक पहले यह गांव अचानक विश्व पर्यटन मानचित्र पर छा गया।
वर्ष 1958 के आसपास डच कामेडी फिल्म फेनफेयर की शूटिंग गिएथूर्न गांव में की गयी। इसके बाद यह गावं दुनिया में खास तौर से ईको फ्रैण्डली विलेज के तौर पर जाना जाने लगा।
इस फिल्म को बनाने वाले बर्ट हांस्त्रा थे। 'नो कार नो पाल्यूशन" की छवि के साथ ही इस गांव का कोना-कोना प्राकृतिक सौन्दर्य से लबरेज है। वातावरण में एक खुशबू के साथ मंद-मंद पवन भी मन-मस्तिष्क को झंकृत कर देती है।
नहरों के उपर लकड़ी के शानदार पुल हैं तो गांव में शानदार म्युजियम भी हैं। इस गांव में नये नवेले आशियाने दिखेंगे तो वहीं दो वर्ष पुराने घर-घरौंदे भी शानदार आवरण में नजर आयेंगे।
इस गांव में सैर सपाटा करने के लिए एमस्टडर्म एयरपोर्ट से भी जा सकते हैं तो रोटेर्डम एयरपोर्ट से भी यात्रा का लुफ्त उठा सकते हैं।
एमस्टडर्म एयरपोर्ट से गिएथूर्न गांव की दूूरी करीब 95 किलोमीटर है तो
वहीं रोटेर्डम एयरपोर्ट से करीब एक सौ दस किलोमीटर की दूरी है। इस गांव तक
पहंुचने के लिए बस व रेल मार्ग से भी जाया जा सकता है।
52.739700,6.077420
52.739700,6.077420
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